प्रत्येक तीसरे वर्ष पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली पुरुषोत्तमा एकादशी 27 सितंबर 2020 , रविवार को है। जिसे कमला एकादशी और पद्द्यमिनी एकादशी भी कहते हैं। इस तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तम तिथियों में से एक कहा है जिसका व्रत करने से श्रीमहालक्ष्मी जी की अनुकूल कृपा प्राप्त होती है। इस दिन घर में जप करने का एक गुना, गौशाला में जप करने पर सौ गुना, पुण्य क्षेत्र तथा तीर्थ में हजारों गुना, तुलसी के समीप जप-तथा जनार्दन की पूजा करने से लाखों गुना, शिव तथा विष्णु के क्षेत्रों में करने से करोड़ों गुना फल प्राप्त होता है।
एकादशी की कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा इस एकादशी के विषय में प्रश्न करने पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे राजेंद्र ! उज्जयिनी नगरी में शिवशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे उनके पाँच पुत्र थे। उनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम जयशर्मा था जो धर्मभ्रष्ट होकर पाप मार्ग की ओर चल पड़ा जिसके कारण उसके माता पिता और बंधु बांधव अत्यंत दुखी रहने लगे। उसका कुमार्ग इतना प्रबल हो गया कि स्वजनों ने उसका परित्याग कर दिया। बुरे कर्मों में लीन रहने के कारण कुछ काल के पश्चात माता-पिता ने भी उसे घर से निकाल दिया। वह वन की ओर चला गया और घूमते घूमते एक दिन तीर्थराज प्रयाग जा पहुंचा। भूख से व्याकुल उसने त्रिवेणी में स्नान किया और निकट ही हरिमित्र मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। वहां पर ब्राह्मणों द्वारा सभी पापों का नाश करने वाली 'कमला' एकादशी की महिमा सुनी जो परम पुण्यमयी तथा भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
जयशर्मा ने भी विधि पूर्वक कमला एकादशी की कथा सुनकर मुनियों के आश्रम में ही व्रत किया जब आधी रात हुई तो भगवती श्रीमहालक्ष्मी उसके पास आकर बोलीं, हे ब्राम्हण पुत्र ! कमला एकादशी व्रत के उत्तम प्रभाव से मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं और देवाधिदेव श्रीहरि की आज्ञा पाकर बैकुंठधाम से तुम्हें वर देने आई हूँ। जयशर्मा ने कहा कि मां यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो वह व्रत बताइए जिसकी कथा में साधु संत हमेशा संलग्न रहते हैं।
श्रीमहालक्ष्मी ने कहा- हे ब्राह्मण ! एकादशी व्रत का माहात्म्य श्रोताओं के सुनने योग्य सर्वोत्तम विषय है यह पवित्र वस्तुओं में सबसे उत्तम है। इससे सभी पापकर्मों का नाश होता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। जो पुरुष श्रद्धा पूर्वक इस एकादशी का व्रतपालन तथा माहात्म्य का श्रवण करता है वह समस्त महापातकों से भी तत्काल मुक्त हो जाता है। जैसे मासों में पुरुषोत्तम मास, पक्षियों में गरुड़ तथा नदियों में गंगा श्रेष्ठ है उसी प्रकार तिथियों में एकादशी तथा द्वादशी भी श्रेष्ठ है। यदि सूर्योदय के समय एकादशी हो, सूर्यास्त के समय द्वादशी और रात्रि व्यतीत होते होते त्रयोदशी भी लग जाए तो उस त्रयोदशी के पारण में सौ यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त होता है।
व्रत करने वाले को व्रती को श्रीविष्णु के इस मंत्र- एकादश्यां निराहारः स्थित्वाहमपरेऽहनि। मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं में भवाच्युत।। द्वारा श्री हरि की स्तुति करके अपने व्रत का पालन करना चाहिए। जिन्हें मंत्र पढ़ने में किसी तरह की परेशानी आ रही हो वे श्रीपुण्डरीकाक्ष की प्रार्थना इस प्रकार करें कि हे श्री हरि ! हे कमलनयन ! हे भगवान अच्युत मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूंगा आप मुझे शरण दें। दूसरे दिन द्वादशी को प्रातः उठकर स्नान ध्यान करने के बाद पंचामृत से जनार्दन को स्नान कराएं और षोडशोपचार विधि से यथा उपलब्ध सामग्री के द्वारा उनकी पूजा अर्चना करें। पूजा में तुलसी पत्र अथवा मंजरी का प्रयोग करना अति उत्तम रहेगा। पूजन करने के पश्चात श्री हरि की इस मंत्र- अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव। प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव।।
अर्थात- हे केशव ! मैं अज्ञान रूपी रतौंधी से अंधा हो गया हूँ आप इस व्रत से प्रसन्न होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें इस तरह से प्रार्थना करें। भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि हे राजन ! जो इस प्रकार ‘पुरुषोत्तमा’ एकादशी का शुद्धभाव से व्रतपालन तथा कथा का श्रवण करता है वह जीवन मरण के बंधन से मुक्त होकर मेरे बैकुंठधाम को प्राप्त होता है।
कमला एकादशी की पूजा विधि !
- एकादशी की सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले स्नान करले।
- आज के दिन दातुन से दन्त साफ न करे क्योकि इस दिन किसी भी पेड़ की डाली तोडना पाप है और विष्णु भगवान नाराज जाते है !
- एकादशी को दिन में सोना नहीं चाहिए।
- पूरा दिन सिर्फ पानी पर रहे। भोजन करना पाप हैं। जरुरी हो तो शाम को फलाहार करे।
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा पाठ करे।
- भगवान् विष्णु के मंत्र "ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय" का जाप करे।
- दूसरे दिन सुबह जल्दी स्नान कर भगवान विष्णु भोग लगाए और तुलसी पत्र से उपवास खोले।
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