पुराणों में अधिकमास यानी मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा है।
अधिकमास बनने की कथा
दैत्याराज हिरण्यकश्यप ने अमर होने के लिए तप किया ब्रह्माजी प्रकट होकर वरदान मांगने का कहते हैं तो वह कहता है कि आपके बनाए किसी भी प्राणी से मेरी मृत्यु ना हो, न मनुष्य से और न पशु से। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरूं, न बाहर मरूं। न दिन में न रात में। न आपके बनाए 12 माह में। न अस्त्र से मरूं और न शस्त्र से। न पृथ्वी पर न आकाश में। युद्ध में कोई भी मेरा सामना न करे सके। आपके बनाए हुए समस्त प्राणियों का मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु।
फिर जब
हिरण्यकश्यप
के
अत्याचार
बढ़
गए
और
उसने
कहा
कि
विष्णु
का
कोई
भक्त
धरती
पर
नहीं
रहना
चाहिए
तब
श्रीहरि
की
माया
से
उसका
पुत्र
प्रहलाद
ही
भक्त
हुआ
और
उसकी
जान
बचाने
के
लिए
प्रभु
ने
सबसे
पहले
12 माह को
13 माह में
बदलकर
अधिक
मास
बनाया।
इसके
बाद
उन्होंने
नृसिंह
अवतार
लेकर
शाम
के
समय
देहरी
पर
अपने
नाखुनों
से
उसका
वध
कर
दिया।
मलमास बनने की कथा
इसके बाद चूंकि हर चंद्रमास के हर मास के लिए एक देवता निर्धारित हैं परंतु इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई भी देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें और इसे भी पवित्र बनाएं तब भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।
पुरषोत्तममास बनने की कथा
इस प्रकार
भगवान
ने
अनुपयोगी
हो
चुके
अधिकमास
को
धर्म
और
कर्म
के
लिए
उपयोगी
बना
दिया।
अत:
इस
दुर्लभ
पुरुषोत्तम
मास
में
स्नान,
पूजन,
अनुष्ठान
एवं
दान
करने
वाले
को
कई
पुण्य
फल
की
प्राति
होगी।
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